Howrah Bridge एक ऐसा पुल है जो महज एक नदी के दोनों किनारों पर बने दो पिलरो पर टीका हुआ है जिससे वर्तमान में रोजाना एक लाख से ज्यादा वाहन गुजरते है, यह एक ऐसा ब्रिज है जिसका कभी उद्घाटन नहीं हुआ, इसने द्वितीय विश्वयुद्ध के बम भी झेले तो बंगाल की खाड़ी से आने वाले भंयकर तूफानों का भी सामना किया, जानेंगे डिटेल से …
हावड़ा ब्रिज
बात सुरु होती है तब, जब अंग्रेज भारत में खूब फल फूल रहे थे भारत का बेशकीमती सामान इंग्लैंड ले जाना हो, इंग्लैंड से पक्का माल बेचने भारत लाना हो या फिर वापस भारत से कच्चा माल इंग्लैंड ले जाना हो… साथ ही उस समय लोगों को अन्य देशों में जाने के लिए भी जल यातायात ही एकमात्र साधन था, और इन सब काम के लिए, कोलकाता बंदरगाह अंग्रेजों के लिए सबसे ज्यादा सुलभ बंदरगाह था और इसी बंदरगाह की वजह से हावड़ा ब्रिज बनना तय हुआ
👉 क्या हावड़ा ब्रिज चाबी से खुलता था
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हावड़ा ब्रिज का इतिहास
कोलकाता बंदरगाह अंग्रेजों के लिए सबसे ज्यादा सुलभ बंदरगाह था लेकिन इसमें एक कमी थी, कमी यह थी की देशभर से आने वाला कच्चा माल हावड़ा तक तो आ जाता पर हावड़ा और कोलकाता के बीच में हुगली नदी उनका रास्ता रोक लेती, हावड़ा से कोलकाता सामान भेजने के लिए नाव का सहारा लिया जाता लेकिन बरसात के दिनों में हुगली नदी जब उफान पर होती तो कई दिनों के लिए काम को रोकना पड़ता साथ ही कई बार नावे डूब जाती जिससे काफी ज्यादा जनधन की हानि भी होती
इसी को ध्यान में रखते हुए 1862 में हुगली नदी पर एक ब्रिज बनाने का फैसला लिया गया, जो कई कारणों व अध्ययन के चलते काफी ज्यादा ढीले होता गया और आखिर में 1870 को कोलकाता ट्रस्ट की स्थापना करके 1871 में हावड़ा ब्रिज अधिनियम पारित कर इस ट्रस्ट को पुल के निर्माण और रखरखाव की जिम्मेदारी दी गई 👉👉 हावड़ा ब्रिज का अनदेखा रहस्य
कोलकाता और हावड़ा को जोड़ने वाले इस पहले फूल का निर्माण 3 साल में पूरा हुआ और आखिर में 1874 में आम यातायात के लिए चालू किया गया यहाँ ख़ास बात जो ध्यान देने वाली है की यह एक पोंटून ब्रिज था, पोंटून ब्रिज को पीपा ब्रिज भी बोला जाता है क्योंकि यह ब्रिज लोहे के बने पीपों और लकड़ी की नावों के ऊपर मनाया जाता है इस ब्रिज का फायदा यह होता है कि नदी का जलस्तर ऊपर नीचे होता है तो यह उसके साथ ही ऊपर नीचे होता रहता है
इस ब्रिज की एक बात और खास थी की इस को इस हिसाब से डिजाइन किया गया था की किसको बीच में से अलग किया जा सके, मतलब जरुरत पड़ने पर दो अलग अलग भागो में किया जा सके| इसकी एक वजह भी थी कि उस समय ज्यादातर व्यापार हुगली नदी के माध्यम से होता था चुकी यह ब्रिज नदी पर तैरता हुआ ब्रिज था इसलिए यह जहाजों का रास्कोता रोक लेता, इसलिय इस समस्या से छुटकारा पाने के लिय जहाजों के आने पर इस ब्रिज को ही खोलकर दो भागों में बांट दिया जाता था और जहाजो को निकाल दिया जाता ।
ब्रिज खोलने के लिए हमेशा एक समय निर्धारित किया जाता और फिर अखबार के माध्यम से लोगों को इसकी सूचना दी जाती। उस निर्धारित समय पर ब्रिज को खोल कर सभी जहाजों को एक साथ निकाल दिया जाता और फिर ब्रिज को वापस एक करके आम लोगों के लिए चालू कर दिया जाता
इस ब्रिज की कुल 1525 फिट और चौड़ाई 62 फीट थी इस ब्रिज के दोनों और पैदल यात्रियों के लिए 7 फिट का फुटपाथ भी बनाया गया था इसको बनाने में उस समय कुल 22 लाख रुपए का खर्च आया था
यहां से आगे चलते हैं और समय आता है 1906 का, सरकार ने इस हावड़ा ब्रिज की निगरानी के लिए एक कमेटी बनाई और उस कमेटी ने बताया कि हावड़ा ब्रिज पर बैल गाड़ियों का जाम लग रहा है और यह अपनी अधिकतम क्षमता को भी पार कर रहा है तो अब कोलकाता को एक और नए ब्रिज की जरूरत है
इसी रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए, 1911 में हावड़ा में एक नया ब्रिज मतलब वर्तमान ब्रिज बनने की बात शुरू हुई लेकिन यह बात आगे नहीं बढ़ पाई क्योंकि इसी साल अंग्रेजों ने अपनी राजधानी को दिल्ली शिफ्ट कर लिया इसलिए पुल की मरम्मत की गई और इसे ही अगले कुछ वर्षों तक चालू रखा गया लेकिन अब यह ओर ज्यादा चलने वाला नहीं था
लिहाजा कुछ वर्षों बाद फिर से नया पुल बनाने की चर्चा सुरु हुई और बंगाल के प्रसिद्ध बिजनेसमैन राजेंद्र नाथ मुखर्जी की अध्यक्षता में सन 1921 में एक कमेटी का गठन किया गया, इस कमेटी ने न्यू हावड़ा ब्रिज कमीशन को अपनी रिपोर्ट सौंपी, रिपोर्ट के आधार पर 1926 में न्यू हावड़ा ब्रिज एक्ट पास किया गया और ब्रिज बनाने के लिए टेंडर निकाला, तो ब्रिज बनाने के लिए सबसे कम बोली एक जर्मन कंपनी ने लगाई तो पेज फिर से फस गया, क्योंकि उस समय जर्मनी और ब्रिटेन के रिश्ते अच्छे नहीं चल रहे थे और इन्हीं रिश्तो की भेंट चढ़ गया यह न्यू हावड़ा ब्रिज
1935 में सरकार ने इस टेंडर को वापस कैंसिल कर दिया और एक दूसरा हावड़ा ब्रिज अमेंडमेंट एक्ट 1935 पारित किया और एक दूसरी कंपनी को इसका टेंडर दे दिया अब इस कंपनी ने 1936 में इस ब्रिज का निर्माण शुरू किया जो की 1942 को पूरा हुआ और 3 फरवरी 1943 को इसे आम लोगों के लिए खोल दिया गया
इस न्यू हावड़ा ब्रिज मतलब वर्तमान ब्रिज की खास बात यह है की 1500 फीट लंबा यह ब्रिज नदी के दोनों और दो बड़े स्तंभों पर टिका हुआ है इन दोनों स्तनों के अलावा नदी में कहीं भी ऐसा कोई आधार नहीं दिया गया है जो इस पुल को सहारा दे सके। इसके अलावा इस फूल की खास बात है कि इसे बनाने में नट बोल्ट का इस्तेमाल नहीं किया गया है
इस ब्रिज को बनाने के लिए 26000 टन स्टील की जरूरत थी लेकिन 1939 में सेकंड वर्ल्ड वॉर शुरू हुआ तो ब्रिटेन से स्टील का आयात बंद हो गया इसलिए 23000 टन स्टील टाटा स्टील द्वारा दी गई थी,, न्यू हावड़ा ब्रिज उस समय बना दुनिया का तीसरा सबसे लंबा कैंटी लीवर पुल था जिसे बनाने में उस वक्त ढाई करोड रुपए का खर्च आया था यह ब्रिज 1943 से आज तक चलता आ रहा है और वर्तमान में इस पुल से हर दिन एक लाख से ज्यादा वाहन और 5 लाख लोग सफर करते हैं
Howrah Bridge FAQ
हावड़ा ब्रिज का रहस्य क्या है
हावड़ा ब्रिज एक अद्भुत इंजीनियरिंग उपलब्धि है यह बिना किसी पिलर के कैसे खड़ा है, साथ ही यह ब्रिज बिना किसी नट बोल्ट के बना हुआ हाउ, यह एक रहस्य है.
हावड़ा ब्रिज कहा पर है
हावड़ा ब्रिज भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के कोलकाता और हावड़ा शहरों को जोड़ता है. यह हुगली नदी पर बना है. हावड़ा ब्रिज को 1943 में सुरु किया गया था और यह भारत का सबसे पुराना और सबसे बड़ा संतुलित कंसोल ब्रिज है. यह एक महत्वपूर्ण रेलवे और सड़क मार्ग है और इस ब्रिज से हर दिन लाखों लोग यात्रा करते है.
हावड़ा ब्रिज कब बनाया गया
हावड़ा ब्रिज भारत में पश्चिम बंगाल राज्य में स्थित एक पुल है, जिसे रेलवे और जनरल रोड नेटवर्क से जोड़ा गया है। यह ब्रिज हुगली नदी को पार करता है। इस पुल का निर्माण 1936 में सुरु हुआ था जो की 1942 को पूरा हुआ तथा 3 फ़रवरी 1943 में इसको आम यातायात के लिय सुरु किया गया
हावड़ा ब्रिज किसने बनाया था
हावड़ा ब्रिज को ब्रिटिश इंजीनियरों ने बनाया था. इसकी डिजाइन ब्रिटिश इंजीनियर सर ब्रैडफोर्ड लेसली ने की थी और इसका निर्माण ब्रिटिश इंजीनियरिंग कंपनी ब्रेथवेट, बर्न एंड जेसप ने किया था. हावड़ा ब्रिज को 1943 में सुरु किया गया था यह एक महत्वपूर्ण रेलवे और सड़क मार्ग है और यह हर दिन लाखों लोगों के लिए यात्रा का माध्यम है.
हावड़ा ब्रिज को कैसे खोला जाता है
हावड़ा ब्रिज को खोलने की प्रक्रिया एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया के साथ साथ एक अद्भुत इंजीनियरिंग उपलब्धि थी और यह भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. जो नदी के व्यापार को सुचारू रूप से चलाने में मदद करता था. हावड़ा ब्रिज को खोलने के लिए, दो मुख्य पुल कोणों को 90 डिग्री तक घुमाया जाता, यह पुल के बीच में स्थित दो गियरों के माध्यम से किया जाता. गियरों को एक इंजन द्वारा संचालित किया जाता था, जो पुल के कोणों को घुमाता है. पुल को खोलने में लगभग 15 मिनट का समय लगता.
हावड़ा ब्रिज क्यों फैमस है
हावड़ा ब्रिज एक खूबसूरत पुल है. यह हुगली नदी के तट पर स्थित है और यह एक मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है. हावड़ा ब्रिज एक अद्भुत इंजीनियरिंग उपलब्धि जो हुगली नहीं के दोनों किनारों पर बने मात्र दो पिलरो पर खड़ा है साथ ही इसको बनाने में नट बोल्ट का इस्तेमाल भी नहीं किया गया है
भारत का सबसे व्यस्त ब्रिज कोनसा है
भारत का सबसे व्यस्त ब्रिज Howrah Bridge है. यह ब्रिज हुगली नदी पर स्थित है और यह कोलकाता और हावड़ा शहरों को जोड़ता है यह ब्रिज 1943 में बनाया गया था और यह भारत का सबसे पुराना और सबसे बड़ा संतुलित कंसोल ब्रिज है. यह एक महत्वपूर्ण रेलवे और सड़क मार्ग है
हावड़ा ब्रिज की चाबी किसके पास है
Howrah Bridge की चाबी भारतीय रेलवे के पास है. यह एक महत्वपूर्ण रेलवे और सड़क मार्ग है और यह हर दिन लाखों लोगों के लिए यात्रा का माध्यम है. पुल को खोलने और बंद करने के लिए भारतीय रेलवे के पास एक विशेष टीम है. यह टीम पुल की सुरक्षा और रखरखाव के लिए भी जिम्मेदार है
हावड़ा ब्रिज 12 बजे की कहानी क्या है
यह एक अजीब कहानी है कि Howrah Bridge को दिन में और रात 12 बजे बंद किया जाता है. इस कहानी के पीछे कई कारण हैं, लेकिन सबसे आम कारण यह है जब पुराना ब्रिज था तब बड़े जहाजों को हुगली नदी पार कराने के लिय बंद किया जाता था साथ ही यह भी कहा जाता है इस ब्रिज बनाने वाले इंजनियरों ने इसके 12 बजे गिरने की भविष्यवाणी की थी, यह भी एक कारण माना जाता है
हावड़ा ब्रिज क्यों प्रसिद्ध है
Howrah Bridge एक अद्भुत इंजीनियरिंग उपलब्धि जो भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, यह एक खूबसूरत पुल और एक लोकप्रिय पर्यटन भी स्थल है. साथ ही यह मात्येर नहीं के किनारे बने दो विशाल स्तंभों पर टिका हुआ, इनके अवाला नहीं में किसी तरह का कोई पिलर नहीं बनाया गया है तो इसको बनाने में नट बोल्ट का इस्तेमाल भी नहीं किया गया है ये सभी कारण हैं जो हावड़ा ब्रिज प्रसिद्ध बनाते है.
हावड़ा ब्रिज का असली नाम क्या है
Howrah Bridge भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के कोलकाता और हावड़ा शहरों को जोड़ता है. यह हुगली नदी पर बना है. हावड़ा ब्रिज को 1943 में सुरु किया गया था और यह भारत का सबसे पुराना और सबसे बड़ा संतुलित कंसोल ब्रिज है. वर्तमान में इसका नाम रविन्द्र सेतु है लेकिन आम बोल चाल में इसे आज भी हावड़ा ब्रिज ही बोला जाता है
हावड़ा ब्रिज की लम्बाई कितनी है
Howrah Bridge एक अद्भुत इंजीनियरिंग का नमूना है जिसकी सुन्दरता और मजबूती दोनों मापको में इसका कोई जवाब नहीं है इस ब्रिज को 1936 में बनाना सुरु किया गया था और 3 फ़रवरी 1943 को आम यातायात के लिए सुरु कर दिया गया इसकी लम्बाई 1500 फिट व चौड़ाई 76 फिट है
उम्मीद है यह आर्टिकल आपकी इस जानकारी के लिए हेल्पफुल साबित हुआ है आपके सुझाव और कमेंट सादर आमंत्रित है इसी प्रकार की जानकारी को वीडियो के रूप में जाने के लिए हमारे युटुब चैनल Click Here का विजिट करें, शुक्रिया
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