Varadraj, कहते हैं मेहनत और अभ्यास से असंभव भी संभव हो जाता है।
आज मैं आपको एक ऐसी प्रेरणादायक कहानी सुनाने जा रही हूँ— एक बालक की, जो पढ़ाई में बहुत कमजोर था…
लेकिन निरंतर अभ्यास ने उसे संस्कृत का महान विद्वान बना दिया।
तो आइए वरदराज की कहानी को पूरा जानते है
Varadraj Ki Puri Kahani
प्राचीन भारत में शिक्षा का केंद्र गुरुकुल हुआ करता था।
जहाँ बच्चे प्रकृति के समीप रहते, गुरुजनों से शिक्षा प्राप्त करते और साथ ही सेवा, अनुशासन और आत्मनिर्भरता भी सीखते थे।
एक आश्रम में एक बालक था जिसका नाम था वरदराज। जो सरल स्वभाव और कोमल ह्रदय का था, लेकिन पढ़ाई में वह बहुत कमजोर था।
Varadraj को गुरूजी ने गुरुकुल से क्यों निकला
गुरुजी जो भी उसे पढ़ाते उसे कुछ भी समझ में नही आता और अन्त में परिणाम ये हुआ की वरदराज धीरे-धीरे अपने साथियों में मज़ाक का पात्र बन गया।
समय बीतता गया…
सभी मित्र आगे बढ़ गए, लेकिन वरदराज वहीं रह गया और अंत में गुरुजी ने भी हार मानकर कहा—
“बेटा, अब तुम यहाँ समय बर्बाद मत करो। घर जाओ और अपने परिवार वालों के काम में हाथ बटाओ। ”
Varadraj की सोच कैसे बदली
अब वरदराज के पास कोई दूसरा ओप्सन नही था भारी मन से वह घर की ओर निकला।
रास्ते में उसे प्यास लगी तो वह एक कुएँ के पास रुक गया। जहाँ पर कुछ महिलाएं कुएँ में से रस्सी से पानी निकल रही थी
तभी उसकी नजर कुएँ के एक बड़े पत्थर पर पड़ी और उसने देखा की एक कठोर पत्थर पर गहरे निशान बने है तब उसने उन महिलाओ से पूछा की इस पत्थर पर यह गहरे निशान कैसे पड़े तो उन महिलाओ ने जवाब दिया की..
“हाँ बेटे, यह निरंतर अभ्यास का परिणाम है।” इस रस्सी को बार-बार खिंचने से इस कठोर पत्थर पर भी गहरे निशान बन गये
यह सुनते ही उसके के हृदय में एक चिंगारी जल उठी।
उसने सोचा—
“जब एक कोमल रस्सी इस कठोर पत्थर पर इतने गहरे निशान बना सकती है
तो क्या मैं निरंतर अभ्यास से विद्या प्राप्त नहीं कर सकता?”
वरदराज बना मुर्ख से विद्वान्
वह वापस गुरुकुल लौटा और अपने गुरूजी से क्षमा मांगे लगा और एक मोक़े की भीख मांगने लगा, गुरूजी ने उसके अंदर आये बदलाव को देख कर उसे एक मौका दे दिया
उसने दिन-रात पढ़ाई में जुट गया और गुरुजनों का आशीर्वाद और अपनी कठिन मेहनत के बल पर वह उस गुरुकुल में प्रथम स्थान पर आया और आगे चल कर वहीं वरदराज संस्कृत का महान विद्वान बन गया।
यह कहानी हमें सिखाती है कि—
निरंतर अभ्यास ही सफलता की कुंजी है।
भाग्य का इंतज़ार करने से बेहतर है कि हम स्वयं मेहनत करें,
अभ्यास करें… और धैर्य रखें।
अभ्यास ही वह शक्ति है,
जो असंभव को भी संभव बना देती है।
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