Louis pasteur- क्या आप जानते हैं कि एक फ्रांसीसी परिवार जिसमें परिवार के मुखिया के अलावा उनकी पत्नी और 3 बेटियां थी जिनमें से दो बेटियों की मौत ब्रेन ट्यूमर और तीसरी बेटी की मौत टाइफाइड से हो चुकी थी पत्नी डिप्रेशन का शिकार हो चुकी थी इतना ही नहीं सेम का भी आधा शरीर लकवा ग्रस्त हो चुका था, लेकिन फिर ना अपने आप को देखा और ना ही परिवार को बस लगे रहे समाज की भलाई के लिए,
जी कहानी उस शख्स की है जिन्होंने दिन रात की कड़ी मेहनत के बाद 1885 में अपनी एक बड़ी खोज की बदौलत आज तक करोड़ो लोगों की जान बचाई है विज्ञान की दुनिया के भगवान – Louis pasteur
कुछ नहीं स्वार्थ भाव से मानव जाती की सेवा करने वाले महान लोग इस धरती पर जन्मे है जिनकी वजह से आज ना केवल मानव जीव सुरक्षित है बल्कि मानव जीवन में इनकी भूमिका भगवान से कम नहीं आंकी जा सकती
Louis pasteur जीवन परिचय
Louis pasteur का जन्म 27 दिसंबर 1822 को फ्रांस के डॉल शहर में हुआ था, लुई पाश्चर के पिता का नाम नेपोलियन बोनापार्ट था जो एक गरीब चमड़े के व्यापारी थे क्योंकि लुई पाश्चर के पिता खुद चमड़े का व्यापार करते थे इसलिए वह सोचते थे कि उनका बेटा पढ़ लिखकर कोई महान आदमी बने या अच्छी नौकरी करें ताकि जो जिंदगी मेरी गुजरी है वह मेरे बेटे को ना देखनी पड़े लुई पाश्चर के परिवार में उनके माता-पिता के अलावा तीन बहने भी थी
लुई पाश्चर की शिक्षा
Louis pasteur के पिता ने एक बड़ी सोच के साथ लुई पाश्चर का 5 वर्ष की उम्र में दाखिला बोनापार्ट के एक बड़े स्कूल में करवा दिया, लुई पाश्चर बचपन से ही काफी बुद्धिमान थे लेकिन फिर भी यह देखकर आश्चर्य हुआ कि अध्यापकों द्वारा पढ़ा गया लुई पाश्चर के कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था इसलिए विद्यालय परिसर में ज्यादातर बच्चे उनको मंदबुद्धि या बुद्धू कहकर चिडाया करते थे
स्कूली शिक्षा स्कूली शिक्षा पाने के बाद लुइ पाश्चर पिता के दबाव के चलते उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए पेरिस चले गए वहीं पर वेश्या को के एक कॉलेज में अध्ययन करने लगे उनकी विशेष रूचि रसायन शास्त्र में थी 26 साल की उम्र में लुई पाश्चर ने रसायन विज्ञान की बजाय भौतिक विज्ञान पढ़ाना प्रारंभ कर दिया था
लुई पाश्चर के आविष्कार
19वीं शताब्दी में आधुनिक दवाइयों के जनक कहे जाने वाले Louis pasteur बचपन से ही दयालु प्रकृति के व्यक्ति थे बचपन में जब भेड़ियों द्वारा काटे जाने पर ग्रामीण लोगों की मौत होती थी या उन्हें तड़पते देखते थे तो वह अक्सर अपने पिता से पूछा करते थे कि क्या इनको बचाया नहीं जा सकता और इन्हीं बातों से तंग आकर एक दिन उनके पिता ने डांटते हुए कहा कि आपको अगर इतनी ही चिंता है इन लोगों की तो आप ही इनके लिए कोई दवाई क्यों नहीं बना लेते. शायद वही पल था, वही चोट थी जो उनके मन और मस्तिष्क पर लगी और कड़ी मेहनत सालों की तपस्या और परिवार के सुख को त्याग कर 1885 में लुइ पाश्चर ने वह कर दिखाया जिसका आज दुनियाभर लोहा मानती है
दूध का पाश्चुरीकरण
पाश्चुरीकरण एक विधि है जिसमें दूध को 62 डिग्री सेंटीग्रेड के तापमान पर 30 मिनट तक गर्म किया जाता है इससे दूध में पाए जाने वाले कीटाणु नष्ट हो जाते हैं और दूध जल्दी खराब नहीं होता
आज जिस दूध को पाश्चुरीकरण दूध के नाम से जाना जाता है वह महान फ्रांसीसी वैज्ञानिक Louis pasteur की ही देन है एक अध्ययन के दौरान लुइस पाश्चर ने पाया था कि दूध या ऐसे ही पदार्थों में सूक्ष्म जीवाणु उपस्थित होते हैं जो उसे खट्टा या खराब कर देते हैं उन्होंने देखा कि इन पदार्थों को यदि एक निश्चित तापमान पर गर्म किया जाए तो इसमें उपस्थित हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट किया जा सकता है इस प्रकार दूध या मक्खन जैसे पदार्थों को अधिक समय तक बिना खराब हुए रखा जा सकता है
रेबीज एंटी वैक्सीन
Louis pasteur ने रेबीज के टीके का 1885 मैं सफल प्रयोग किया था उस समय विश्व की जनसंख्या लगभग डेढ़ सौ करोड़ थी और यह जानकर आश्चर्य होगा कि वह समय सालाना एक करोड़ के लगभग लोग पागल जानवरों के काटे जाने से मर जाते थे
लुई पाश्चर ने अपने जीवन का अधिकांश समय परिवार और अपनों को छोड़कर पागल कुत्ता और भेड़ियों को पकड़ने और उन पर शोध करने में ही लगा दिया था रिसर्च में लुइ पाश्चर ने पाया कि पागल कुत्तों के मुंह से निकलने वाली लार ही जानलेवा होती है उन्होंने इस लार में पाए जाने वाले जवानों का परीक्षण कुत्तों पर ही किया और रेबीज रोग के प्रति एंटीबॉडी विकसित करने में सफल रहे
Louis pasteur की इस महान उपलब्धि की हर जगह प्रशंसा हुई इसके लिए उन्हें फ्रांस सरकार द्वारा सम्मानित किया गया और उनके नाम से पाचन संस्थान की स्थापना भी की गई
रेशम के कीड़ों का उपचार
एक समय आया तब फ्रांस का रेशम उद्योग बर्बाद होने की कगार पर आ गया था वजह थी रेशम के कीड़ों का बीमार होकर मरना. लुई पाश्चर ने इसकी रोकथाम के लिए लगभग 6 वर्षों तक इतने प्रयास किए कि वह अस्वस्थ भी हो गए थे लेकिन आखिरकार रेशम के इन कीड़ों के साथ-साथ Louis pasteur ने फ्रांस के रेशम उद्योग को भी बचा लिया था
लुई पाश्चर का जीवन काफी उतार-चढ़ाव वाला रहा एक और उनका बचपन काफी गरीबी में बिता तो दूसरी ओर अपने प्रयोगों के चलते कभी परिवार का सुख नहीं ले पाए लेकिन उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत से आज मनुष्य की जिंदगी को काफी आसान कर दिया ना केवल रेबीज का टीका, रेशमी कीडो पर शोध, पाश्चुरीकरण जैसे बड़े शोध किए बल्कि कई प्रकार के वन्य जीव जन्तुओ में पाए जाने वाले रोगों पर शोध करके उनका जीवन बचाया जैसे मुर्गियों में पाया जाने वाला हैजा, भेड़ो में पाया जाने वाला एंथ्रेक्स, चेचक जैसे रोगों के जीवाणु की खोज करके मानव जगत को बचाया
72 वर्ष की उम्र में 28 सितंबर 1895 को लुई पाश्चर का देहांत हुआ, 5 अक्टूबर को उनकी अंतिम यात्रा निकाली गई थी जिसमें हजारों का जनसैलाब उमड़ा था लोगों को रोते बिलखते देखा गया, मानव जाति का यह भगवान आज हमारे बीच नहीं है लेकिन उन्होंने अपने जीवन के सभी सुख-सुविधाओं को छोड़कर जो जीवन अपना मानव समाज के लिए लगाया वह हम सभी के लिए प्रेरणादायक है
उम्मीद है यह आर्टिकल आपको अच्छा लगा होगा, आपके किसी भी प्रकार के सुझाव सादर आमंत्रित हैं
यह भी जाने 👇👇
राजस्थान के शिक्षा संत Jagat Mama
सायबर ठगी से कैसे बचे // Cyber Crime
विवाह,एक सामाजिक समझौता Social Agreement
महान वैज्ञानिक लुइ पाश्चर का जन्म कहां और कब हुआ था
लुई पाश्चर का जन्म 27 दिसंबर 1822 को फ्रांस के डोल शहर में चमड़े के एक व्यापारी के घर हुआ था
लुई पाश्चर की मृत्यु कब हुई थी
लुई पाश्चर की मृत्यु 72 वर्ष की उम्र में 28 सितंबर 1895 हुई थी