जब पश्चिम बंगाल या कोलकाता की बात होती है तो सबसे पहले उल्लेख हावड़ा ब्रिज का होता है और हो भी क्यों ना यह ब्रिज जितना बड़ा, विशाल या व्यापार और यातायात के लिए महत्वपूर्ण है उतना ही रहस्मय भी है Howrah Bridge key
हावड़ा ब्रिज के कई रोचंक तथ्य है तो कई प्रकार के किसे, कथा और कहानियां भी है और इन्ही में से एक दंतकथा है की हावड़ा ब्रिज चाबी से खुलता था… तो आइए जानते है की आखिर हावड़ा ब्रिज की वह चाबी किसके पास है 👉 कहानी सबसे ज्यादा बार हार कर जितने वाले इंसान की
👇👇 विडियो के रूप में देखें 👇👇
हावड़ा ब्रिज पुरे विश्व में अपनी बनावट के लिए विख्यात है जोकि पश्चिम बंगाल के कोलकाता और हावड़ा को आपस में जोड़ता है यह असल में एक कैंटीलीवर ब्रिज है यानी झूले जैसा पुल है यह हुगली नदी के दोनों और बने केवल चार खम्बो पर टिका है जो बिना किसी नट बोल्ट के एक प्लेटफोर्म पर बना हुआ है
मतलब… मतलब साफ है की जब यह ब्रिज खुलता ही नहीं है तो फिर चाबी कहा से आई, और जब चाबी है ही नहीं… तो फिर किसी के पास हावड़ा ब्रिज की चाबी हो कैसे सकती है
कुल मिलाकर बात यह है की
- हावड़ा ब्रिज की चाबी का होना,
- हावड़ा ब्रिज की चाबी किसके पास है या
- हावड़ा ब्रिज की चाबी अंग्रेज जाते जाते पानी में फैक गए
जैसे सवाल सिर्फ दन्तकथा या फिर यु कहे की सरासर झूठी अफवाह मात्र ही है
लेकिन… अब यहाँ एक सवाल जरुर आता है की अगर हावड़ा ब्रिज की चाबी है ही नहीं तो फिर येतरह तरह के सवाल आए कहा से, या फिर इन कहानियों की सुरुवात कहा से हुई
इसको समझने के लिए… पहले हावड़ा ब्रिज को इतिहास से आज तक समझना होगा… ध्यान रहे हावड़ा ब्रिज के दो भागो का इतिहास है, और हम पहले भाग दो को समझेंगे ताकि इस रहस्य को अच्छे से समझ सके
भाग 2
सन 1926 को न्यू हावड़ा ब्रिज एक्ट पास किया गया… ध्यान रहे यह न्यू हावड़ा ब्रिज था मतलब, मतलब साफ है की यहाँ पहले से भी कोई ब्रिज था… जिसका जिक्र आगे करेंगे, लेकिन इस ब्रिज का क्या हुआ- कई कारणों से इसका निर्माण टलता गया और फिर आया वक्त 1935 का जब सरकार ने यानि उस समय जो ब्रिटिश सरकार थी उसने हावड़ा ब्रिज अमेंडमेंट एक्ट 1935 पारित किया और एक (बीबीजे) यानि ब्रेथवेट एंड जेसप कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड को इसका टेंडर दे दिया.
अब इस कंपनी ने 1936 में इस ब्रिज का निर्माण शुरू किया जो की 1942 को पूरा हुआ और 3 फरवरी 1943 को इसे आम लोगों के लिए खोल दिया गया जो की आज तक प्रीति दिन एक लाख से ज्यादा वाहनों का वजन उठा रहा है
भाग 1
अभी हमने भाग 2 में बात की थी की यहाँ एक पहले से ही ब्रिज था — तो यहाँ उसकों समझते है वर्तमान ब्रिज से पहले / मतलब सबसे पहले 1874 में हुगली नदी पर कोलकता और हावड़ा दोनों शहरों को जोड़ने वाला एक पोंटून ब्रिज बनाया गया था, इसको पीपा ब्रिज भी बोला जाता है क्योंकि यह ब्रिज लोहे के बने पीपों और लकड़ी की नावों के ऊपर बनाया गया था मतलब यह नदी पर तेरता हुआ ब्रिज था
इस ब्रिज की एक बात खास थी की इस को इस हिसाब से डिजाइन किया गया था की इसको बीच में से अलग किया जा सके, मतलब जरुरत पड़ने पर दो अलग अलग भागो में किया जा सके| इसकी एक वजह भी थी कि उस समय ज्यादातर व्यापार हुगली नदी के माध्यम से होता था चुकी यह ब्रिज नदी पर तैरता हुआ ब्रिज था इसलिए यह जहाजों का रास्ता रोक लेता, इसलिय इस समस्या से छुटकारा पाने के लिय जहाजों के आने पर इस ब्रिज को ही खोलकर दो भागों में बांट दिया जाता था और जहाजो को निकाल दिया जाता।
अब जब इन दोनों हावड़ा ब्रिज को समझ चुके है तो बात आती, हावड़ा ब्रिज चाबी की
तो हुआ कुछ यु होगा …. यह सिर्फ अनुमान है की कोई ऐसा व्यक्ति जिसने कई वर्षो पहले हावड़ा के पोंटून ब्रिज को खुलते और बंद होते देखा होगा … और फिर कई वर्षो बाद इसी जगह बने कैंटीलीवर ब्रिज को देखा होगा
वैसे भी कहते है पहले के लोग ज्यादा भोले होते थे और किसी भी चीज पर ज्यादा नहीं सोचा करते थे, चुकी पुराना ब्रिज खुलता था जबकि नया ब्रिज ऐसा नहीं था
इस बात को इस तथ्य से भी बल मिल जाता है की वर्तमान ब्रिज का निर्माण देश की आजादी से कुछ ही वर्ष पहले ही हुआ था, तो लोगो को लगा होगा की इस ब्रिज की चाबी को अंग्रेज साथ ले गए या फिर किसी ने अंदाजा लगा लिया होगा की चाबी को अंग्रेज नदी में फेक गए
जब बात कोलकाता से निकलकर आगे बढ़ी तो … तो बात से बात जुड़ती गई और बात का बतंगड़ बन गया, वैसे भी हमारे समाज में अधिकतर कुरीतियाँ, पाखंड या अताथ्यात्मक कहानियाँ ऐसे ही बनती है
यह भी जाने 👇👇
👉 | हावड़ा ब्रिज का इतिहास A to Z |
👉 | कहानी सबसे ज्यादा बार हार कर जितने वाले इंसान की |