join

वीर गोकुल जाट का अनसुना इतिहास / History of Veer Gokul Jat

Spread the love

औरंगजेब का इशारा मिलते ही जल्लाद ने उनकी भुजा पर पहला वार किया, उन्होंने हँसते हुए कहा दूसरा वार कर, एक-एक अंग काटा गया, लेकिन उनकी आंखों में विद्रोह की चमक कम न हुई। यह कहानी है देश के पहले असहयोग आंदोलन के जनक… Veer Gokul Jat की जिन्हें इतिहास में कभी वो जगह नहीं मिली जो मिलनी चाहिए थी तो आइये इसे से शुरू से शुरू करते हैं

Veer Gokul Jat

17वीं सदी का वो दौर, जब मुगल बादशाह औरंगजेब का आतंक अपने चरम पर था। मंदिर तोड़े जा रहे थे, किसानों पर जुल्म ढाए जा रहे थे, और हिंदुओं की आस्था को कुचला जा रहा था।… इसी दौर में औरंगजेब की सेना का सामना होता है जाट सरदार गोकुल देव

जुल्म की आंधी में जो डटा, वो शेर था इक जाट,
वीर गोकुल की गाथा, लिखी गई खून से साथ।”

“परिचय… वीर गोकुला जाट तिलपत गांव, हरियाणा के सरदार थे, सन् 1666 में, औरंगजेब ने मथुरा में अब्दुन्नवी (अब्दुल नबी खान) को फौजदार बनाकर भेजा, तो उसने लगान को दोगुना कर दिया। वीर गोकुला ने देखा कि उसकी प्रजा भूख से तड़प रही है। किसानों को खेती से होने वाले उत्पादन का अधिकांश हिस्सा लगान के नाम पर हड़प लिया जाता है और किसान देखते रह जाते हैं

किसानो की इस दयनीय स्थिति को देखकर गोकुला का गुस्सा सातवे आसमान पर था वीर गोकुला नें किसानों को एकजुट करके ऐलान किया – ‘हम मुगलों को लगान नहीं देंगे!’ यह भारत का पहला असहयोग आंदोलन था। मई 1669 में सिहोरा गांव पर अब्दुन्नवी ने हमला किया, लेकिन गोकुल ने उसका डटकर मुकाबला किया। भयंकर युद्ध हुआ, और गोकुल की सेना ने मुगलों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।” “

गोकुला का विद्रोह बढ़ता गया। नवंबर 1669 में तिलपत के मैदान में मुगल सेना के साथ निर्णायक जंग हुई। गोकुल के पास 20,000 किसानों की फौज थी, जिसमें जाटो के अलावा यादव और गुर्जर भी थे, साथ ही उनकी बहादुर पत्नियां और बहनें भी शामिल थीं। तीन दिन तक खून की नदियां बहीं। मुगल सेना के हसन अली खान ने तोपों का इस्तेमाल किया। गोकुल और उनके चाचा उदय सिंह ने वीरता की मिसाल कायम की, तीन दिन बाद औरंगजेब को और बड़ी सेना लेकर खुद को इस युद्ध में उतरना पड़ा आखिरकार संख्या में भारी मुगल सेना ने गोकुला को घेर कर बंदी बना लिया।

1 जनवरी 1670 को वीर गोकुल को आगरा लाया गया। औरंगजेब ने उनसे कहा, ‘इस्लाम कबूल करो, तो जान बख्श दूंगा।’ गोकुल ने गरजकर जवाब दिया, ‘औरंगजेब, तेरा ये रास्ता हमें हरगिज़ मंजूर नहीं।’ जल्लाद ने उनकी भुजा पर पहला वार किया। वीर गोकुल ने हंसते हुए कहा, ‘दूसरा वार कर!’ और वीर गोकुला का एक-एक अंग काटा गया, लेकिन उनकी आंखों में विद्रोह की चमक कम न हुई। आखिरकार, उनका सिर धरती पर गिरा, कहते हैं इसी युद्ध के साथ मथुरा के केशवदेव मंदिर को ढहाने का रास्ता भी औरंगजेब के लिए साफ हो गया था।”

वीर गोकुल जाट और उनके साथी किसानो की बहादुरी का अंदाजा ऐसे लगा सकते हो की खानवा का युद्ध, हल्दीघाटी का युद्ध, पानीपत का युद्ध ये सब एक ही दिन में समाप्त हो गए थे जबकि वीर गोकुल जाट और उनके साथी किसानों ने मुगलो की बड़ी सेना का तीन दिनों तक डटकर सामना किया था “

गोकुल का बलिदान व्यर्थ नहीं गया। उनकी शहादत ने लोगों के दिलों में आजादी की आग जलाई। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि जुल्म के आगे झुकना नहीं, बल्कि उसका मुकाबला करना चाहिए। आज भी मथुरा के लोग उन्हें ‘वीर गोकुल’ के नाम से याद करते हैं।”

ये थी वीर गोकुल जाट की कहानी – एक योद्धा, जो अपने लोगों के लिए लड़ा और शहीद हुआ। लेकिन अफसोस, इतना कुछ करने के बाद भी इस वीर को इतिहास में वह दर्जा नहीं मिला जो मिलना चाहिए था…

तो, तो क्या… कमेंट में बताएं कि आपको ये गाथा कैसी लगी। आगे आप किस विषय पर ऐसी जानकारी चाहते हैं, और हां इस आर्टिकल को शेयर करना और मेरे पेज को फॉलो करना बिल्कुल ना भूले, ताकि ये वीरता की कहानी हर घर तक पहुंचे।” मिलते अगले आर्टिकल में तब तक राम-राम

👉हावड़ा ब्रिज का इतिहास A to Z
👉कहानी सबसे ज्यादा बार हार कर जितने वाले इंसान की
उम्मीद है की उपर्युक्त जानकारी के लिए यह आर्टिकल हेल्पफुल साबित हुआ है आपके सुझाव और कमेंट सादर आमंत्रित है इसी प्रकार की जानकारीयो को वीडियो के रूप में जानने के लिए हमारे युटुब चैनल Click Here का विजिट करें,  शुक्रिया
Veer Gokul Jat

Leave a Comment

error: Content is protected !!