Dollar के मुकाबले रुपया गिरता ही जा रहा है बात यहां सिर्फ रुपया की ही नहीं है दुनिया भर की करेंसी डॉलर के मुकाबले कमजोर हो रही है, इस साल रुपया डॉलर के मुकाबले 7 फीसदी तक कमजोर हो चुका है वहीं यूरो डॉलर के मुकाबले 20 साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुका है, तो आज इस आर्टिकल में यही जानने की कोशिश करेंगे कि आखिर डॉलर ही सभी करेंसीयो में बाहुबली क्यों है
Dollar के मुकाबले भारतीय रुपए की कीमत लगातार गिर रही है यह $1 के मुकाबले ₹80 से अधिक हो चुकी है और अभी भी इसकी कीमत का गिरना जारी है ऐसे में माना जा रहा है रुपया और निचले स्तर तक जा सकता है, किसी भी देश की करेंसी की वैल्यू गिरने के पीछे कई कारण होते हैं तो साथ ही इसके कई अलग-अलग प्रकार के परिणाम भी देखे जाते हैं
क्यों गिर रहा है रुपया
वैसे तो रुपया ही नहीं किसी भी देश की करेंसी का गिरने के पीछे उस राष्ट्र की कई महत्वपूर्ण नीतियों, निर्णयो, व्यापार, विदेश नीतियां, अंतरराष्ट्रीय घटनाएं आदि कई कारण होते है पर यहाँ कुछ उन बिन्दुओ को समझते है जो भारतीय रुपये को प्रभावित कर रहिया है
- रुपए के गिरने के सबसे बड़े कारणों में से एक है विदेशी निवेशकों के दोबारा भारत से अपने निवेश को निकाल लेना, विदेशी निवेशकों का पैसा निकाल लेना इस बात का संकेत है कि वह भारत को इस समय निवेश करने के लिए सुरक्षित नहीं समझ रहे हैं
- रुपए की गिरावट का एक कारण यूक्रेन युद्ध भी माना जा रहा है युद्ध की वजह से तेल, गेहूं, खाद जैसे उत्पादों, जिनके रूस और यूक्रेन बड़े निर्यातक देश है कि आपूर्ति कम हो गई है और दाम बढ़ गए हैं इसलिए भारत विशेष रूप से कच्चे तेल का बड़ा आयातक है इससे देश का आयात खर्च बहुत बढ़ गया है आयात के लिए भुगतान डॉलर में होता है जिससे देश के अंदर डॉलर की कमी हो रही है और डॉलर की कीमत ऊपर जा रही है
- रुपए की गिरावट का एक कारण डॉलर सूचकांक का लगातार बढ़ना भी है इस सूचकांक में पौंड, यूरो, रुपया, येन जैसी दुनिया की बड़ी मुद्राओं की तुलना में अमेरिकी डॉलर को देखा जाता है इस सूचकांक के ऊपर जाने का मतलब है अन्य सभी मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की मजबूती ऐसे में बाकी सभी मुद्राएं डॉलर के मुकाबले कमजोर हो जाती है
डॉलर इतना मजबूत कैसे हो रहा है
अमेरिकी मुद्रा Dollar की पहचान एक वैश्विक मुद्रा के रूप में बन गई है अंतरराष्ट्रीय व्यापार की बातें तो डॉलर और यूरो यह दो वह करेंसी है जो काफी ज्यादा लोकप्रिय और स्वीकार्य है दुनियाभर के केंद्रीय बैंकों में जो विदेशी मुद्रा का भंडार होता है उसमें 65 तक अमेरिकी डॉलर होते हैं, दुनिया भर की बैंकों में Dollar का जो यह अपार भंडार है यही इसे एक वैश्विक मुद्रा बना देता है
कुल अमेरिकी डॉलर का 65 प्रतिशत इस्तेमाल अमेरिका से बाहर होता है यानी दुनिया भर के 85% व्यापार डॉलर के द्वारा किया जाता है वही दुनियाभर के 40 फीसदी कर्ज का लेनदेन डॉलर में होता है
इसलिए विदेशी बैंकों को अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए बहुत मात्रा में Dollar की जरूरत होती है और यह सर्वदत्त है कि किसी भी वस्तु की मांग जितनी ज्यादा होगी उसकी वैल्यू भी उतनी ही अधिक होगी
डॉलर वैश्विक मुद्रा क्यों है
1944 में ब्रिटेन वुड्स समझौते के बाद Dollarकी मजबूती की शुरुआत हुई, इससे पहले अधिकांश देश केवल सोने को ही बेहतर मानक मानते थे उन सभी देशों की सरकारें वादा करती थी कि वह उनकी मुद्रा को सोने की मांग के वैल्यू के आधार पर तय करेंगे
न्यू हैम्पशर के ब्रिटेन वुड्स में दुनिया के विकसित देश मिले और उन्होंने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले सभी मुद्राओं की विनिमय दर को तय किया उस समय अमेरिका के पास दुनिया का सबसे अधिक सोने का भंडार था इस समझौते ने दूसरे देशों को भी सोने की जगह अपनी मुद्रा का डॉलर को समर्थन करने की अनुमति दी
1970 की शुरुआत में कई देशों ने Dollar के बदले सोने की मांग शुरू करी थी क्योंकि उन्हें मुद्रास्फीति से लड़ना था, उस समय राष्ट्रपति निक्सन ने फोर्ट नॉक्स को अपने सभी भंडारों को समाप्त करने की अनुमति देने के बजाय डॉलर को सोने से अलग कर लिया लेकिन तब तक डॉलर दुनिया की सबसे खास और सुरक्षित मुद्रा बन चुकी थी
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दुनिया की सबसे ताकतवर मुद्रा कौनसी है
दुनिया की सबसे ताकतवर मुद्रा अमेरिकी डॉलर है जिसका दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों में विदेशी मुद्रा भंडार में 65 फ़ीसदी हिस्सा है
दुनिया की दूसरी सबसे ताकतवर मुद्रा कौन सी है
दुनिया की दूसरी ताकतवर मुद्रा यूरो है जो दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों में विदेशी मुद्रा भंडार में 19.9 % है